Anti Drug Campaign

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क़दम बढ़ाएं ........ ज़िंदगी की ओर

नशामुक्त हिमाचल अभियान: जिंदगी जियें-नशे को नहीं

मेरे गांव में एक आम्रवृक्ष होता था । हमारा बचपन उसी विशालकाय आम्रवृक्ष के नीचे, उसके उपर, आस-पास खेलते, अटखेलियों में बीता । पूरे दोपहरी की धूप को भी वो अपने उपर सहकर हमें घनी छांव देता था । लेक़िन असमय ही उसके कोटर में लाइलाज़ बीमारी लग गई थी जिससे पेड़ पर आम के फल तो उसी संख्या में भरपूर लगते थे किंतु पूरा वृक्ष धीरे-धीरे सूखने लग गया था । बिल्कुल ऐसे लगता था कि एक गाय दूध तो दे रही है परन्तु उसे चर्म रोग हो गया हो । फल भी छोटे होते गए । हम अपनी आंखों के सामने ही उस विशालकाय आम्रवृक्ष को तिल-तिल मरते हुए देखते रहे । और फिर एक दिन वो भी आया जब ज़डों के खोखलेपन ने तना, टहनियों ओर पत्तों से एक-एक रसबूंद सोख ली ........और वृक्ष सूख कर खड़े रहने का अपना भार तक नहीं उठा पाया....... हमारा समाज की जड़ें भी नशे की चपेट में आकर उसे खोखला करती जा रही हैं और वो समाज जो मान-सम्मान, यष, हमारी आवष्यकताऐं, हमारा जीवन का आधार है, धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है.......सांसे फूलती जा रही है ।

रीढ़ में ही कैंसर.

किसी भी समाज की रीढ़ उस समाज के युवा होते हैं । युवा..... जिन पर राष्ट्र के विकास और उत्थान का उत्तरदायित्व है । युवा...जिनके कांधे देश का भार लेकर चलते हैं । युवा.....जो भविष्य का सपना है और वर्तमान की मज़बूत कड़ी भी । नशे का सबसे अधिक प्रभाव इसी युवा पर पड़ा है और इसका ख़ामियाज़ा पूरा समाज, राष्ट्र और मानवता भुगत रही है । नशा का कैंसर तीव्रता से आज युवाओं को अपने पाश में बांध रही है । इससे पारंपरिक सामाजिक ढ़ांचा भी तहस-नहस होने के कगार पर है । उड़ता पंजाब ही नहीं .......देश के हर राज्य इस नशीली कैंसर की आंधी में उड़ रहा है । यदि युवा ही लड़खड़ाने लगा तो देश को दिशा देने की जिम्मेवारी किसकी होगी ? शरीर की रीढ़ ही हमें स्थाईत्व और शक्ति प्रदान करती है । समाज के लिए वो रीढ़ युवा ही है । ऐसे में रीढ़ का ये कैंसर हमारे सामाजिक तानेबाने को नष्ट करने पर आतुर है ।

हिमाचल में नशे का दंश

हिमाचल को शांतप्रिय, देवभूमि कहा जाता है । इसकी शांति भी अब नशे के दंश से अछूती नहीं रही है । पड़ोसी राज्यों से बहती नशीली हवाओं ने यहां के वातावरण को भी ज़हरीला बना दिया है । इसके भयानक दुष्परिणाम भी सामने आ ही रहे हैं । एक सर्वे के अनुसार हिमाचल में नशे को लेकर स्थितियां बद्तर होती जा रही है । तीन ज़िलों में करवाए गए इस सर्वे में भी चैंकाने वाले आंकड़े सामने आए है । नेषनल फेमिली हैल्थ सर्वे (2016-2017) के अनुसार

  • हिमाचल में शराब का सेवन 39.7 प्रतिषत है जो कि पंजाब 34 प्रतिषत और चंडीगढ़ 39.3 प्रतिषत से भी अधिक है ।
  • तंबाकु सेवन में भी हिमाचल बढ़त बनाए हुए हैं और 40.5 प्रतिषत लोग इसके आदी हो चुके हैं । जबकि चंडीगढ़ में ये प्रतिषत 22.5 प्रतिषत, हरियाणा में 35.8 प्रतिषत है ।
  • इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज के एक स्वतंत्र सर्वे में हिमाचल के 40 प्रतिषत से अधिक युवा इस नशे के खतरे के षिकार को पार कर चुके हैं ।
  • राजधानी शिमला में तो स्थितियां काबू से बाहर होती जा रही है । शिमला के 54 प्रतिषत युवा लड़के तथा 24 प्रतिषत युवा लड़कियां किसी न किसी प्रकार के नशे में संलिप्त है ।
  • शिमला में 29.3 प्रतिषत विद्यार्थी सिगरेट और खैनी आदि के आदी हो चुके हैं । वहीं मदिरा सेवन में 24.45 प्रतिषत, भांग सेवन में 20.87 प्रतिषत, क़फ सिरप का नशे के रूप में सेवन 4.4 प्रतिषत और अफ़ीम के 3.4 प्रतिषत आदी हैं ।
  • पुलिस ने कम समय में ही नशे की खेप की पकड़ की तो चैंकाने वाले आंकड़े सामने आए:
  • चरस - 229.43 किलोग्राम
  • अफीम 4.4 कि.ग्रा.
  • पोस्तादाना - 263.07 कि.ग्रा.
  • स्मैक 243 ग्राम
  • हेरोईन 983.96 ग्राम
  • ब्राउन शुगर 3 कि.गा्र.
  • कोकीन 68.83 ग्रा.
  • इंजेशन - 910
  • नशे के प्रकार

    हिमाचल को सुन्न करती जा रही नशे की लत ने अपने अनेक रूप दिखाए हैं । समय के साथ-साथ नशे के प्रकार भी बदलते रहते हैं और युवा इसे अपना सामाजिक स्टेटस मानने लगे हैं । हाथ में सिगरेट का कष, गुटका, खैनी आदि को जीवन का हिस्सा बना चुके युवा अपने विनाष की नींव रख चुकें हैं । नशे के ये प्रकार हैं: शराब सिगरेट, बीड़ी आदि गुटका खैनी आदि तंबाकु के कई प्रकार अफीम गांजा हेरोईन चिट्टा अफीम बूट पालिश, कफ सिरप, बाम एवं अन्य खतरनाक उत्पाद आज प्रचलन में हैं ।

    धुंधला होता वर्तमान और गर्त में भविष्य

    बाहरी राज्यों से हिमाचल में भारी नशे की खेप अलग-अलग तरीकों से पहंुचती है और इसकी आपूर्ति स्कूल के बच्चों और युवाओं तक यहां के नशा माफिया के लोग आसानी से करते हैं । यह बेहद दुःखद है कि इस प्रक्रिया को चलाने के तौर-तरीक़े स्कूलों के विद्यार्थियों से आरम्भ होते हैं और धीरे-धीरे प्रारंभिक स्वाद को लत में बदला जाता है । एक इंसान की पहचान उसकी संगत से ही होती है ....इसके चलते ही एक नशेड़ी विद्यार्थी अपने दोस्त, संगी साथी को भी इसमें शामिल करने लगता है । ऐसा करते-करते स्कूली बच्चे अपने संभलते पैरों में नशे की बेड़ियां बांध लड़खड़ाने लगते हैं । गांव में स्कूलों के बच्चों को स्थानीय माफिया के लोग ये लत लगाते हैं । एक कष या एक पैग के साथ हुई इस विनाश की यात्रा फिर आहिस्ता-आहिस्ता दर्दनाक अंत के समीप आ जाती है । हमने ऐसे बहुत बच्चों से बात की जिन्होंने माना कि हमें नशे के लिए उकसाया जाता रहा है । जो इसकी गिरफ्त में आ गए वो फिर समाज, परिवार और दोस्तों के लिए अभिषाप से कम नहीं होते । क्योंकि फिर वो व्यक्ति नहीं बोलता...बोलता है उसके भीतर का राक्षसी नशा ।

    अपराध का मूल नशा

    हम कैसे भूल सकते हैं कि जितनी भी कुरीतियां या जघन्य अपराध सामने घटित हो रहे हैं .....उनका मूल यही नशा है । दिल्ली का गुड़िया कांड हो या कोटखाई का मासूम के साथ जघन्यता की हदें पार करना, शिमला के मासूम युग मर्डर की भयावकता हो या बलात्कार की अन्य बढ़ती घटनाऐं.....नशे के दानव ने मानवता को शर्मसार किया है । एक मासूम जो स्कूल से घर जा रही थी, उसे कितनी बेदर्दी, पीड़ा के साथ बलात्कार करके मार दिया गया.....क्या प्रदेश इसे भूल गया है ? इसके पीछे भी नशा ही मुख्य कारण रहा था । जिस प्रकार से तोड़-मरोड़ कर उस मासूम की हत्या की गई उसकी बर्बरता ने प्रदेश ही नहीं पूरा देश हिला दिया । शिमला का मासूम युग.........एक नन्हा सा बच्चा...अपने माता-पिता की आंखों का तारा शिमला के ही युवकों द्वारा जिस प्रकार अपहरण कर यातनाऐं दी गई और बाद में जिस प्रकार उसकी निर्मम हत्या की गई ....... उसका आधार यही नशा था । मासूम युग को कई दिनों तक इन नशेड़ियों ने एक सुनसान जगह पर घर पर बांधे रखा और जब अपहरणकर्ता घर से बाहर जाते थे तो उस मासूम को नशा करवाकर पलंग के बाॅक्स में बंद कर देते थे । अंत में इन नशेड़ियों ने उस मासूम को शराब पिला कर पत्थर से बांध एक पौष इलाके के बड़े टैंक में ज़िंदा ही डूबो कर मार दिया । इतना ही नहीं, उस मासूम की गली-सड़ी लाष का पानी उस टैंक से वहां के निवासियों को महीनों तक पिलाया गया । देश में युवा पीढ़ी की एक बड़ी प्रतिषतता आज इतनी गिर चुकी हैं कि नशे में वो घर, परिवार, महिला, बच्चें, समाज और संस्कारों की तिलांजली देकर अपराध में संलिप्त है । बलात्कार, हत्याऐं, आगजनी, टूटते परिवार आदि सभी समस्याओं में नशा भी एक मूल कारण है । वर्तमान संदर्भ में हिमाचल प्रदेश चिट्टा की चपेट में आ चुका है । चिट्टा की लत इंसान को मौत के मुहाने पर ले आती है और फिर उससे बाहर आने के रास्ते बंद हो जाते हैं । इंसान तड़प उठता है इसे पाने के लिए । न मिल पाने की स्थिति में उसके प्राण खतरे में आ जाते हैं । चिट्टा से प्रदेश में कितनी ही मौतें हो चुकी हैं और कितनी ही घटनाऐं दिनोंदिन सुनने में आ रही है । यह एक अति मंहगा नशा है ।

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    Types and Causes of Drugs

    कारण

    • हम उम्र लोगों (दोस्त,सहपाठी,पड़ोसी) का नशीला पदार्थ लेने के लिये दबाव ।
    • उत्सुकतावश (देखें अमुक पदार्थ प्रयोग करने से क्या होता है) ।
    • आन्नद प्राप्ति के लिए ।
    • बड़ों जैसा दिखने के लिए ।
    • पढ़ाई में असफल होने पर ।
    • माता-पिता का प्यार न मिलना तथा अकेलेपन को दूर करने के लिए ।
    • शारीरिक कष्ट या बीमारी (अत्यधिक दर्द) के लिए दी गई दवाई का बिना
    • डाक्टरी सलाह से ज्यादा मात्रा या ज्यादा समय तक सेवन ।
    • उदासी या बोरडम दूर करने के लिए ।
    • आत्मसम्मान की कमी को दूर करने के लिए ।
    • नशीले पदार्थों के आसानी से उपलब्ध होने की वजह से ।

    कारण

    • नशीले पदार्थों के सेवन से बालक को कुछ समय के लिए आनन्द का अनुभव होता है क्योंकि वह मादकता या नशा महसूस करता है और थोड़ी देर के लिए अपनी परेशानियों को भूल जाता है या फिर गैर वास्तविक दुनिया में खो जाता है।
    • इसी अहसास को बार-बार महसूस करने के लिए वह नशे का प्रयोग करता है।
    • यदि कुछ समय पश्चात् वह नशीले पदार्थ का सेवन बन्द करता है या उसकी मात्रा कम करता है तो उसे एक विशेष किस्म के शारीरिक और मानसिक कष्ट का अनुभव होता है जिसे दूर करने के लिए वह फिर वही नशा करने लग जाता है तथा नशे की आदत का गुलाम हो जाता है और नशे के कुचक्र मे फंसता चला जाता है।

    व्यक्तिगत कारण :

    • बचपन में समुचित मानसिक विकास न होना
    • 3 से 5 वर्ष तक की आयु में बच्चे को समुचित प्यार न मिलना व देखरेख न हेना |
    • माता-पिता का देहान्त या उनके द्वारा दुर्व्यवहार तथा व्यक्तित्व की नींव कमजोर रहने से आगे चलकर जिन्दगी में आने वाली परेशानियों को न झेल पाना ।
    • किशोरावस्था के साथ आने वाले मानसिक और शारारिक परिवर्तनों से उपजा तनाव।

    पारीवारिक कारण :

    • माता-पिता का अत्यधिक व्यस्त होना और बच्चों को समय न दे पाना ।
    • बच्चों को जरूरत से ज्यादा आजादी ।
    • माता-पिता की आपसी कलह से उपजे तनाव से ग्रस्त बच्चों द्वारा नशा शुरू करना ।
    • परिवार में किसी व्यक्ति द्वारा नशा शुरू करना और देखा-देखी में
    • दूसरे द्वारा भी नशा शुरु करना ।

    सामाजिक कारण :

    • गरीबी का दुःख ।
    • बढ़ता शहरीकरण ।
    • बेरोजगारी ।
    • नशीले पदार्थां की तस्करी और आतंकवाद ।

    आमतौर पर प्रयोग किये जाने वाले नशीले पदार्थ या दवायें निम्न हैं :- :

    • तम्बाकू , बीड़ी, सिगरेट, सिगार, हुक्का, तम्बाकू वाला पान मसाला ।
    • शराब (बीयर, वाईन, जिन, व्हिसकी, रम, देसी या अंग्रेजी शराब) ।
    • भांग, गांजा, चरस ।
    • नॉरकोटिक एनैलजैसिक्स (अफीम, मॉरफीन, कोडीन, स्मैक, हिरोइन, ब्राउन शूगर)।
    • उद्धीपक पदार्थ जैसे एमफीटामाइन, कोकेन ।
    • शामक हिप्नाटिक्स गोलियां, कैपसूल या इंजैक्शन।
    • अन्य पदार्थ जैसे दर्द निवारक औषधियां, खांसी के शर्बत (जिनमें नशीली दवाओं की मौजूदगी हो),
    • इन्हेनेटेंस (बूटपालिश, पैट्रोल, डीजल, एसीटोन, इरेज-एक्स डाइल्यूटर) इत्यिदि।

    Involvement , Identification and Harmful Effects

      ड्रग्स में शामिल लोग

    • विद्यार्थी या गैर विद्यार्थी ।
    • बेरोजगार किशोर और युवा ।
    • कारखानों में काम करने वाले बच्चे।
    • दिहाड़ीदार मजदूर बच्चे।
    • आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े बच्चे।

    निम्नलिखित लक्षण नशे से ग्रस्त बालक में देखे जाते हैं :-

    • आंखें लाल रहना ।
    • आंखों की सूजन ।
    • उनींदापन ।
    • देर से उठना या बार-बार नींद खुलना ।
    • कमजोर, सुस्त और अस्त-व्यस्त व्यक्ति ।
    • तर्जनी, मध्यम उंगली और अंगूठे पर पीले निशान ।
    • निर्जन स्थानों पर या शौचालय इत्यादि में अधिक समय लगाना ।
    • सांस, हाथों और कपड़ों से एक विशेष प्रकार की गन्ध आना ।
    • बाजुओं आदि पर सुईयों के निशान ।
    • भूख न लगना और खराब या गिरता स्वास्थ्य ।
    • अस्पष्ट बातचीत और चंचलता ।

    नशीले पदार्थां के हानिकारक प्रभाव

    • कॉन्सटपिशन या लूज मोशन्स।
    • गैस्ट्रो-इन्टेस्टाइनिल समस्याएं।
    • पेट में अल्सर या ब्लीडिंग।
    • मानसिक स्मस्याएं जैसे अनिद्रा, ध्यान न लगना आदि।
    • श्वास संबंधी दिक्कतें।
    • त्वचा पर चकत्ते और खुजली या जलन।
    • लंबे समय तक पेन किलर के इस्तेमाल से लिवर और किडनी तक के खराब होने का खतरा हो सकता है।